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सिम्स भी खरीदेगा दवा, टेंडर हुआ
बिलासपुर (निप्र) सिम्स में भोजन के बाद दवा खरीदी के लिए भी टेंडर बुलाया गया है। हालांकि मेडिकल कार्पोरेशन से भी दवा रही हैं। सिम्स में दो दिनों पूर्व ही मरीजों, प्रसूताओं के भोजन के लिए ठेका आमंत्रित किया गया है। इस बार बेहतर से बेहतर भोजन परोसने की तैयारी है। वहीं मेडिकल कार्पोरेशन से काफी दवाएं सिम्स पहुंच गई है। इसके बाद भी कुछ दवाओं की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए टेंडर बुलाया गया है। इससे मरीजों को दवाओं के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। अस्पताल अधीक्षक प्रो. रमणेश मूर्ति का कहना है कि मेडिकल कार्पोरेशन से दवाओं की सप्लाई हो रही है। कुछ दवाएं नहीं सकी हैं। इसे ध्यान में रखते हुए टेंडर बुलाया गया है।
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नकली दवा बेचने वालों का पता बताएगी वेबसाइट
गुड़गांव

ड्रग कंट्रोल ऑफिस हाइटेक होने जा रहा है। इससे जिले की रजिस्टर्ड दुकानों के अलावा जिन दवाओं पर प्रतिबंध है उनके बारे में लोगों को घर बैठे ही आसानी से जानकारी मिल सकेगी। ऐसे में दुकानदार नकली दवा बेचने से पहले हजार बार सोचेंगे। विभाग की वेबसाइट पर मेडिकल स्टोर से संबंधित सारी सूचनाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।

लोगों की सुविधाओं को देखते हुए जिले के सभी केमिस्ट शॉप की डिटेल विभाग की वेबसाइट www.fdaharyana.com पर डाली जाएगी। इनमें सबसे पुराने मेडिकल स्टोर की डिटेल भी होगी। विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार जिले में करीब 1300 मेडिकल स्टोर हैं। इनमें सबसे पुराना अग्रवाल मेडिकल स्टोर है। जो 1978 में शुरू हुआ था।

जिले में यह मेडिकल स्टोर 45वें नंबर पर रजिस्टर्ड हुआ था। इसके अलावा नकली दवा बेचने, बगैर लाइसेंस मेडिकल स्टोर चलाने, बगैर डिग्री मरीजों को चेक करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सूचना भी दी जाएगी। गुड़गांव में फिलहाल ऐसे 25 केस चल रहे हैं। पिछले साल 11 नए केस कोर्ट में दाखिल किए गए थे।जिन मेडिकल स्टोर संचालकों के दवा के सैंपल विभाग ने सीज किए हैं, उनकी रिपोर्ट आते ही साइट पर अपलोड होगी। जिससे लोगों को उस दुकान के बारे में डिटेल मिलेगी। ड्रग कंट्रोल ऑफिसर पूजा चौधरी का कहना है कि वेबसाइट पर कुछ समय से डेटा डाला जा रहा है। अब पिछले साल का पुराना डेटा अपलोड किया जा रहा है। पूरे काम में एक महीने का समय लग सकता है। इसके बाद विभाग की हर डिटेल वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------
अब सख्ती से तय होंगे दवाओं के दाम
 नई दिल्ली June 22, 2014
दवा कंपनियां को सख्त मूल्य नियमन के दायरे में लाया जा सकता है। सरकार कीमतों के निर्धारण के लिए नए मॉडल को लागू करने की तैयारी कर रही है। इस कानून के लिए तय किए जाने वाले नियमों को बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है जिसके तहत मूल्य निर्धारण को अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चीन और 14 ओईसीडी देशों की तर्ज पर तय किया जा सकता है।
सरकार की ओर से बाजार के लिए दवाओं के मूल्यों को नियंत्रित करने वाले राष्टï्रीय दवा मूल्य निर्धारण प्राधिकार (एनपीपीए) ने नए नियमन की दिशा में काम शुरू कर दिया है। एनपीपीए के चेयरमैन श्रीनिवास ने कहा कि इस वित्त वर्ष के अंत तक कानून का पहला मसौदा पूरा करने की योजना है।
श्रीनिवास ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'अलग-अलग देशों में दवाओं की कीमतों के निर्धारण से संबंधित मॉडल पेश करने के संबंध में कुछ संस्थानों के साथ बातचीत की जा रही है। इसके साथ ही आंतरिक तौर पर भी इस पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। इस शोध को पूरा होने में दो से तीन महीनों का समय लगेगा।' उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कानून के दायरे में पेटेंट, आयतित और यहां तक कि गैर-सूचीबद्ध दवाओं को मिलाकर हर तरह की दवाओं को लाया जाएगा।
फिलहाल दवाओं का मूल्य निर्धारण  दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 के तहत किया जाता है। यह आदेश पिछली सरकार द्वारा पारित राष्ट्रीय दवा मूल्य निर्धारण नीति का हिस्सा है। इस नीति के तहत 340 अनिवार्य दवाओं के मूल्य की सीमा निर्धारित है जबकि अन्य सभी दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे से बाहर रखा गया है। इनमें पेटेंटे दवाएं भी शामिल हैं।
प्रस्तावित कानून में एनपीपीए को ज्यादा शक्ति दी जाएगी। श्रीनिवास ने कहा, 'कानून नियमों के मुकाबले अधिक सशक्त माध्यम है। हमारा प्रयास वैश्विक मॉडल पर आधारित एक प्रगतिशील कानून को लागू करना है, जो उचित हो। साथ ही मूल्य नियंत्रण के लिए एनपीपीए को ज्यादा अधिकार मिल सके।'
फिलहाल 79,000 करोड़ रुपये के घरेलू दवा बाजार का 30 फीसदी हिस्सा नियमन के दायरे में है। इसके मुताबिक 348 अनिवार्य दवाओं की कीमत पर नियंत्रण किया गया है। इन दवाओं के मूल्य में सालाना थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर इजाफा किया जाता है। अन्य दवाओं के मामले में कंपनियां साल में 10 फीसदी तक दाम बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं।
जबकि केंद्र की नई सरकार से उम्मीद है कि वह दवाओं के मूल्य निर्धारण में सख्ती बरतने और उन्हे आम आदमी के लिए सुलभ बनाने की बेहतर व्यवस्था करेगी वहीं एनपीपीए ने हाल ही में इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए यह पहली बार ऐसा हुआ है जब कि नियामक ने दवाओं के पेशकश मूल्य को नियंत्रित करने की कोशिश की है। हाल ही में नियामक की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि मौजूदा दवाओं के नए ब्रांड का मूल्य, उस खंड की सबसे महंगी दवा के बराबर होगा। डीपीसीओ के जनहित प्रावधान का इस्तेमाल कर जारी की गई ऐसी ही एक अन्य अधिसूचना में नियामक की ओर से कहा गया कि वह कैंसर, एड्स, टीबी, मलेरिया, हृदय रोग, मधुमेह और अस्थमा की उपचार की अलग-अलग ब्रांड की दवाओं के मूल्यों पर भी नजर रखेगा। ऐसी स्थिति में  किसी ब्रांड की कीमत उस खंड की दवाओं की औसत कीमत के 25 फीसदी से अधिक होने पर, नियामक उस दवा का मूल्य तय कर सकता है।
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नया हेल्थकेयर फंड पेश करेगी दवा कंपनी सिप्ला
 मुंबई June 22, 2014

देसी दवा कंपनी सिप्ला अपने बिजनेस मॉडल में बदलाव कर रही है और अब वह नए कारोबार सिप्ला न्यू वेंचर्स (सीएनवी) पर ध्यान केंद्रित कर रही है। निवेश की नई इकाई निवेश के लिए वेंचर कैपिटल पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इसकी योजना सीएनवी के तहत नया फंड जुटाने की है। कंपनी प्रबंधन के मुताबिक, नया हेल्थकेयर फंड पेश करने के लिए सीएनवी को निवेशकों की तरफ से काफी दिलचस्पी देखने को मिली है।
सिप्ला न्यू वेंचर के प्रमुख चंद्रू चावला ने कहा, हमारी योजना सिप्ला के लिए नया कारोबार शुरू करने की है और कारोबार का आकार अगले 10 साल में सिप्ला के आज के कारोबार के बराबर करने की है। सिप्ला ने एक साल पहले न्यू वेंचर के प्रमुख के तौर पर चावला की नियुक्ति की थी। चावला साल 2011 में सिप्ला के इंटरनैशनल बिजनेस डिविजन में शामिल हुए थे।
इससे पहले वह ल्यूपिन और वॉकहार्ट में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। निवेश इकाई के जरिए सिप्ला स्टेमप्यूटिक्स, चेज फार्मा, मैब फार्मा और बायो मैब में निवेश कर चुकी है। उन्होंने कहा, सीएनवी के तहत हमारे पास अभी तीन इनक्यूबेटर हैं - सिप्टेक, बायोलॉजिकल्स और कंज्यूमर हेल्थकेयर। हालांकि हम नए क्षेत्रों में विस्तार कर रहे हैं, जो सिप्ला के कारोबारी मौके के हिसाब से ठीक है।
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